- चल हवा, उस ओर मेरे साथ चलचल वहाँ तक जिस जगह मेरी प्रियागा रही होगी नई ताजा गजलचल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।
चल जहाँ मेरा अमर विश्वास हैआत्माओं में मिलन की प्यास हैआज तक का तो यही इतिहास हैहै जहाँ मधुवन वहीं पर रास हैमिल गया जिसको कि कान्हा का पताकौन राधा है जरा तू ही बताजो कन्हैया से करेगी प्रीति छलचल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।मत फँसा सुख चक्र दुख की कील मेंमत उठा तूफान दुख की झील मेंहो सके तो रख नये जलते दियेआस के बुझते हुए कंदील मेंतू हवा है कर सुरभि का आचमनछोड़कर अपने पुराने ये बसनतू नए अहसास के कपड़े बदलचल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।चल जहाँ तक बाँसुरी की धुन चलेफूल की खुशबू चले, गुनगुन चलेभीग जा तू प्रीति के हर रंग मेंसाथ जब तक प्राण का फागुन चलेपूछ मत अब जा रहा हूँ मैं कहाँचल प्रतीक्षा में खड़े होंगे जहाँएक नीली झील, दो नीले कमलचल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।
Sunday, January 20, 2008
चल हवा ** कुँअर बेचैन **
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment