Sunday, January 20, 2008

चल हवा ** कुँअर बेचैन **

  • चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल
    चल वहाँ तक जिस जगह मेरी प्रिया
    गा रही होगी नई ताजा गजल
    चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।

    चल जहाँ मेरा अमर विश्वास है
    आत्माओं में मिलन की प्यास है
    आज तक का तो यही इतिहास है
    है जहाँ मधुवन वहीं पर रास है
    मिल गया जिसको कि कान्हा का पता
    कौन राधा है जरा तू ही बता
    जो कन्हैया से करेगी प्रीति छल
    चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।
    मत फँसा सुख चक्र दुख की कील में
    मत उठा तूफान दुख की झील में
    हो सके तो रख नये जलते दिये
    आस के बुझते हुए कंदील में
    तू हवा है कर सुरभि का आचमन
    छोड़कर अपने पुराने ये बसन
    तू नए अहसास के कपड़े बदल
    चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।
    चल जहाँ तक बाँसुरी की धुन चले
    फूल की खुशबू चले, गुनगुन चले
    भीग जा तू प्रीति के हर रंग में
    साथ जब तक प्राण का फागुन चले
    पूछ मत अब जा रहा हूँ मैं कहाँ
    चल प्रतीक्षा में खड़े होंगे जहाँ
    एक नीली झील, दो नीले कमल
    चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल।

ज़िंदगी यूँ भी जली **कुँअर बेचैन**

ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक
चाँदनी चार क‍़दम, धूप चली मीलो तक
प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर
ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक
प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली
कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक
घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी
ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक
माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़कर बरसी
मेरी पलकों में जो इक पीर पली मीलों तक
मैं हुआ चुप तो कोई और उधर बोल उठा
बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक
हम तुम्हारे हैं 'कुँअर' उसने कहा था इक दिन
मन में घुलती रही मिसरी की डली मीलों तक